
बाँस की खुर्री खाट के ऊपर, हर आहट पर कान धरे|
आधी सोई आधी जागी,थकी दोपहरी जैसी मां |
निदा फ़ाज़ली
आसमान धुनिए के छप्पर सा
बाँस की खुर्री खाट के ऊपर, हर आहट पर कान धरे|
आधी सोई आधी जागी,थकी दोपहरी जैसी मां |
निदा फ़ाज़ली