
इक ये दिन जब अपनों ने भी हमसे रिश्ता तोड़ लिया,
इक वो दिन जब पेड़ की शाख़े बोझ हमारा सहती थीं|
जावेद अख़्तर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
इक ये दिन जब अपनों ने भी हमसे रिश्ता तोड़ लिया,
इक वो दिन जब पेड़ की शाख़े बोझ हमारा सहती थीं|
जावेद अख़्तर