
इक ये दिन जब सारी सड़कें रूठी रूठी लगती हैं,
इक वो दिन जब ‘आओ खेलें’ सारी गलियाँ कहती थीं|
जावेद अख़्तर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
इक ये दिन जब सारी सड़कें रूठी रूठी लगती हैं,
इक वो दिन जब ‘आओ खेलें’ सारी गलियाँ कहती थीं|
जावेद अख़्तर