
मकाम ‘फ़ैज़’ कोई राह में जँचा ही नहीं,
जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
आसमान धुनिए के छप्पर सा
मकाम ‘फ़ैज़’ कोई राह में जँचा ही नहीं,
जो कू-ए-यार से निकले तो सू-ए-दार चले|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़