
जो हम पे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिज्राँ,
हमारे अश्क तेरी आकबत सँवार चले|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
आसमान धुनिए के छप्पर सा
जो हम पे गुज़री सो गुज़री मगर शब-ए-हिज्राँ,
हमारे अश्क तेरी आकबत सँवार चले|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़