
हुज़ूर-ए-यार हुई दफ़्तर-ए-जुनूँ की तलब,
गिरह में ले के गिरेबाँ का तार तार चले|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हुज़ूर-ए-यार हुई दफ़्तर-ए-जुनूँ की तलब,
गिरह में ले के गिरेबाँ का तार तार चले|
फ़ैज़ अहमद फ़ैज़