
जिस्म से रूह तलक अपने कई आलम हैं,
कभी धरती के, कभी चांद नगर के हम हैं |
निदा फ़ाज़ली
आसमान धुनिए के छप्पर सा
जिस्म से रूह तलक अपने कई आलम हैं,
कभी धरती के, कभी चांद नगर के हम हैं |
निदा फ़ाज़ली