
खुद-ब-खुद नींद-सी आंखों में घुली जाती है,
महकी-महकी है शब-ए-गम तेरे बालों की तरह|
जां निसार अख़्तर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
खुद-ब-खुद नींद-सी आंखों में घुली जाती है,
महकी-महकी है शब-ए-गम तेरे बालों की तरह|
जां निसार अख़्तर
very nice
Thanks a lot ji.