
‘फ़िराक़’ अक्सर बदल कर भेस मिलता है कोई काफ़िर,
कभी हम जान लेते हैं कभी पहचान लेते हैं|
फ़िराक़ गोरखपुरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
‘फ़िराक़’ अक्सर बदल कर भेस मिलता है कोई काफ़िर,
कभी हम जान लेते हैं कभी पहचान लेते हैं|
फ़िराक़ गोरखपुरी