
भटक रही थी जो कश्ती वो ग़र्क-ए-आब हुई,
चढ़ा हुआ था जो दरिया उतर गया यारो|
शहरयार
आसमान धुनिए के छप्पर सा
भटक रही थी जो कश्ती वो ग़र्क-ए-आब हुई,
चढ़ा हुआ था जो दरिया उतर गया यारो|
शहरयार