
अब क्या बताएँ टूटे हैं कितने कहाँ से हम,
ख़ुद को समेटते हैं यहाँ से वहाँ से हम|
राजेश रेड्डी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
अब क्या बताएँ टूटे हैं कितने कहाँ से हम,
ख़ुद को समेटते हैं यहाँ से वहाँ से हम|
राजेश रेड्डी