
क्या जाने किस जहाँ में मिलेगा हमें सुकून,
नाराज़ हैं ज़मीं से ख़फ़ा आसमाँ से हम|
राजेश रेड्डी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
क्या जाने किस जहाँ में मिलेगा हमें सुकून,
नाराज़ हैं ज़मीं से ख़फ़ा आसमाँ से हम|
राजेश रेड्डी