
आईने से उलझता है जब भी हमारा अक्स,
हट जाते हैं बचा के नज़र दरमियाँ से हम|
राजेश रेड्डी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
आईने से उलझता है जब भी हमारा अक्स,
हट जाते हैं बचा के नज़र दरमियाँ से हम|
राजेश रेड्डी