
ऐ नये दोस्त मैं समझूँगा तुझे भी अपना,
पहले माज़ी का कोई ज़ख़्म तो भर जाने दे|
नज़ीर बाक़री
आसमान धुनिए के छप्पर सा
ऐ नये दोस्त मैं समझूँगा तुझे भी अपना,
पहले माज़ी का कोई ज़ख़्म तो भर जाने दे|
नज़ीर बाक़री