
जो आंसुओं में कभी रात भीग जाती है,
बहुत क़रीब वो आवाज़-ए-पा लगे है मुझे|
जां निसार अख़्तर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
जो आंसुओं में कभी रात भीग जाती है,
बहुत क़रीब वो आवाज़-ए-पा लगे है मुझे|
जां निसार अख़्तर