
हम जो काग़ज़ थे अश्कों से भीगे हुए,
क्यों चिराग़ों की लौ तक हवा ले गई|
बशीर बद्र
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हम जो काग़ज़ थे अश्कों से भीगे हुए,
क्यों चिराग़ों की लौ तक हवा ले गई|
बशीर बद्र