
जो ग़ालिब आज होते तो समझते,
ग़ज़ल कहने में क्या कठिनाइयां हैं|
सूर्यभानु गुप्त
आसमान धुनिए के छप्पर सा
जो ग़ालिब आज होते तो समझते,
ग़ज़ल कहने में क्या कठिनाइयां हैं|
सूर्यभानु गुप्त