
हम तेरी चाह में, ऐ यार ! वहाँ तक पहुंचे।
होश ये भी न जहाँ है कि कहाँ तक पहुंचे।
गोपालदास “नीरज”
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हम तेरी चाह में, ऐ यार ! वहाँ तक पहुंचे।
होश ये भी न जहाँ है कि कहाँ तक पहुंचे।
गोपालदास “नीरज”
बहुत खूबसूरत
हार्दिक धन्यवाद जी।