
वो न ज्ञानी ,न वो ध्यानी, न बिरहमन, न वो शेख,
वो कोई और थे जो तेरे मकाँ तक पहुंचे।
गोपालदास “नीरज”
आसमान धुनिए के छप्पर सा
वो न ज्ञानी ,न वो ध्यानी, न बिरहमन, न वो शेख,
वो कोई और थे जो तेरे मकाँ तक पहुंचे।
गोपालदास “नीरज”