
एक इस आस पे अब तक है मेरी बन्द जुबां,
कल को शायद मेरी आवाज़ वहां तक पहुंचे।
गोपालदास “नीरज”
आसमान धुनिए के छप्पर सा
एक इस आस पे अब तक है मेरी बन्द जुबां,
कल को शायद मेरी आवाज़ वहां तक पहुंचे।
गोपालदास “नीरज”