
लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में,
तुम तरस नहीं खाते, बस्तियाँ जलाने में|
बशीर बद्र
आसमान धुनिए के छप्पर सा
लोग टूट जाते हैं, एक घर बनाने में,
तुम तरस नहीं खाते, बस्तियाँ जलाने में|
बशीर बद्र
वाह , बहुत सुन्दर लिखा है |
जी, हार्दिक धन्यवाद।