
खुली छतों के दिये कब के बुझ गये होते,
कोई तो है जो हवाओं के पर कतरता है।
वसीम बरेलवी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
खुली छतों के दिये कब के बुझ गये होते,
कोई तो है जो हवाओं के पर कतरता है।
वसीम बरेलवी