
घर के आंगन मैं भटकती हुई दिन भर की थकन,
रात ढलते ही पके खेत सी शादाब लगे|
निदा फ़ाज़ली
आसमान धुनिए के छप्पर सा
घर के आंगन मैं भटकती हुई दिन भर की थकन,
रात ढलते ही पके खेत सी शादाब लगे|
निदा फ़ाज़ली