
खुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की,
खिडकी खुली है गालिबन उनके मकान की|
गोपालदास ‘नीरज’
आसमान धुनिए के छप्पर सा
खुशबू सी आ रही है इधर ज़ाफ़रान की,
खिडकी खुली है गालिबन उनके मकान की|
गोपालदास ‘नीरज’