
औरों के घर की धूप उसे क्यूँ पसंद हो
बेची हो जिसने रौशनी अपने मकान की|
गोपालदास ‘नीरज’
आसमान धुनिए के छप्पर सा
औरों के घर की धूप उसे क्यूँ पसंद हो
बेची हो जिसने रौशनी अपने मकान की|
गोपालदास ‘नीरज’