
न बस में ज़िन्दगी इसके न क़ाबू मौत पर इसका,
मगर इन्सान फिर भी कब ख़ुदा होने से डरता है|
राजेश रेड्डी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
न बस में ज़िन्दगी इसके न क़ाबू मौत पर इसका,
मगर इन्सान फिर भी कब ख़ुदा होने से डरता है|
राजेश रेड्डी