
उससे मैं कुछ पा सकूँ ऐसी कहाँ उम्मीद थी,
ग़म भी वो शायद बरा-ए-मेहरबानी दे गया|
जावेद अख़्तर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
उससे मैं कुछ पा सकूँ ऐसी कहाँ उम्मीद थी,
ग़म भी वो शायद बरा-ए-मेहरबानी दे गया|
जावेद अख़्तर