

हो के मायूस न यूँ शाम से ढलते रहिए,
ज़िंदगी भोर है सूरज से निकलते रहिए|
कुँअर बेचैन
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हो के मायूस न यूँ शाम से ढलते रहिए,
ज़िंदगी भोर है सूरज से निकलते रहिए|
कुँअर बेचैन
वाह, बहुत खूब |
हार्दिक धन्यवाद जी।