
उड़ते-उड़ते आस का पंछी दूर उफ़क़ में डूब गया,
रोते-रोते बैठ गई आवाज़ किसी सौदाई की|
क़तील शिफ़ाई
आसमान धुनिए के छप्पर सा
उड़ते-उड़ते आस का पंछी दूर उफ़क़ में डूब गया,
रोते-रोते बैठ गई आवाज़ किसी सौदाई की|
क़तील शिफ़ाई