
यूँ तुझे ढूँढ़ने निकले के न आए ख़ुद भी,
वो मुसाफ़िर कि जो मंज़िल थे बजाए ख़ुद भी|
अहमद फ़राज़
आसमान धुनिए के छप्पर सा
यूँ तुझे ढूँढ़ने निकले के न आए ख़ुद भी,
वो मुसाफ़िर कि जो मंज़िल थे बजाए ख़ुद भी|
अहमद फ़राज़