
रोते हो एक जजीरा-ए-जाँ को “फ़राज़” तुम,
देखो तो कितने शहर समंदर के हो गये|
अहमद फ़राज़
आसमान धुनिए के छप्पर सा
रोते हो एक जजीरा-ए-जाँ को “फ़राज़” तुम,
देखो तो कितने शहर समंदर के हो गये|
अहमद फ़राज़