
शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं,
मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं|
राजेश रेड्डी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
शाम को जिस वक़्त ख़ाली हाथ घर जाता हूँ मैं,
मुस्कुरा देते हैं बच्चे और मर जाता हूँ मैं|
राजेश रेड्डी