
जानता हूँ रेत पर वो चिलचिलाती धूप है,
जाने किस उम्मीद में फिर भी उधर जाता हूँ मैं|
राजेश रेड्डी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
जानता हूँ रेत पर वो चिलचिलाती धूप है,
जाने किस उम्मीद में फिर भी उधर जाता हूँ मैं|
राजेश रेड्डी