
यूँ ही बे-सबब न फिरा करो, कोई शाम घर में भी रहा करो,
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो|
बशीर बद्र
आसमान धुनिए के छप्पर सा
यूँ ही बे-सबब न फिरा करो, कोई शाम घर में भी रहा करो,
वो ग़ज़ल की सच्ची किताब है, उसे चुपके-चुपके पढ़ा करो|
बशीर बद्र