
दो-चार गाम राह को हमवार देखना,
फिर हर क़दम पे इक नयी दीवार देखना|
निदा फ़ाज़ली
आसमान धुनिए के छप्पर सा
दो-चार गाम राह को हमवार देखना,
फिर हर क़दम पे इक नयी दीवार देखना|
निदा फ़ाज़ली