
हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी,
जिसको भी देखना हो कई बार देखना |
निदा फ़ाज़ली
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हर आदमी में होते हैं दस-बीस आदमी,
जिसको भी देखना हो कई बार देखना |
निदा फ़ाज़ली