
इस नग़्मा-तराज़-ए-गुलशन ने तोड़ा है कुछ ऐसा साज़-ए-दिल,
इक तार कहीं से टूट गया इक तार कहीं से टूट गया|
शमीम जयपुरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
इस नग़्मा-तराज़-ए-गुलशन ने तोड़ा है कुछ ऐसा साज़-ए-दिल,
इक तार कहीं से टूट गया इक तार कहीं से टूट गया|
शमीम जयपुरी