
हम हैं मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार की तरह,
उठती है हर निगाह ख़रीदार की तरह|
मजरूह सुल्तानपुरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
हम हैं मता-ए-कूचा-ओ-बाज़ार की तरह,
उठती है हर निगाह ख़रीदार की तरह|
मजरूह सुल्तानपुरी
बहुत सुंदर गीत |
जी, हार्दिक धन्यवाद।