
मैं मौसमों के जाल में जकड़ा हुआ दरख़्त,
उगने के साथ-साथ बिखरता रहा हूँ मैं|
निदा फ़ाज़ली
आसमान धुनिए के छप्पर सा
मैं मौसमों के जाल में जकड़ा हुआ दरख़्त,
उगने के साथ-साथ बिखरता रहा हूँ मैं|
निदा फ़ाज़ली