
क़तरा अब एहतिजाज* करे भी तो क्या मिले,
दरिया जो लग रहे थे समंदर से जा मिले|
(*विरोध, आपत्ति)
वसीम बरेलवी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
क़तरा अब एहतिजाज* करे भी तो क्या मिले,
दरिया जो लग रहे थे समंदर से जा मिले|
(*विरोध, आपत्ति)
वसीम बरेलवी