
सभी का धूप से बचने को सर नहीं होता,
हर आदमी के मुक़द्दर में घर नहीं होता|
वसीम बरेलवी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
सभी का धूप से बचने को सर नहीं होता,
हर आदमी के मुक़द्दर में घर नहीं होता|
वसीम बरेलवी