
एक तालाब-सी भर जाती है हर बारिश में,
मैं समझता हूँ ये खाई नहीं जाने वाली|
दुष्यंत कुमार
आसमान धुनिए के छप्पर सा
एक तालाब-सी भर जाती है हर बारिश में,
मैं समझता हूँ ये खाई नहीं जाने वाली|
दुष्यंत कुमार