
मानेगी क्या उखाड़ के, जड़ से ही अब अरे,
इक संगदिल बयार है, जामुन का पेड़ है।
सूर्यभानु गुप्त
आसमान धुनिए के छप्पर सा
मानेगी क्या उखाड़ के, जड़ से ही अब अरे,
इक संगदिल बयार है, जामुन का पेड़ है।
सूर्यभानु गुप्त