
ज़ुबां ख़ामोश है डर बोलते हैं,
अब इस बस्ती में ख़ंजर बोलते हैं|
राजेश रेड्डी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
ज़ुबां ख़ामोश है डर बोलते हैं,
अब इस बस्ती में ख़ंजर बोलते हैं|
राजेश रेड्डी