
लहूलोहान पड़ा था ज़मीं पे इक सूरज,
परिन्दे अपने परों से हवाएँ करने लगे|
राहत इन्दौरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
लहूलोहान पड़ा था ज़मीं पे इक सूरज,
परिन्दे अपने परों से हवाएँ करने लगे|
राहत इन्दौरी