
अक़्स-ए-ख़ुशबू हूँ, बिखरने से न रोके कोई,
और बिखर जाऊँ तो, मुझको न समेटे कोई|
परवीन शाकिर
आसमान धुनिए के छप्पर सा
अक़्स-ए-ख़ुशबू हूँ, बिखरने से न रोके कोई,
और बिखर जाऊँ तो, मुझको न समेटे कोई|
परवीन शाकिर
Kya baat………behad khubsurat panktiyan.
हार्दिक धन्यवाद जी।