
मुरली सा कोई शख्स बजा जब भी ध्यान में,
मेरे बदन की आबो-हवा गोकुली हुई|
सूर्यभानु गुप्त
आसमान धुनिए के छप्पर सा
मुरली सा कोई शख्स बजा जब भी ध्यान में,
मेरे बदन की आबो-हवा गोकुली हुई|
सूर्यभानु गुप्त