
ता-क़यामत शब-ए-फ़ुर्क़त में गुज़र जाएगी उम्र,
सात दिन हम पे भी भारी हैं सहर होते तक|
मिर्ज़ा ग़ालिब
आसमान धुनिए के छप्पर सा
ता-क़यामत शब-ए-फ़ुर्क़त में गुज़र जाएगी उम्र,
सात दिन हम पे भी भारी हैं सहर होते तक|
मिर्ज़ा ग़ालिब