
रेंगने की भी इजाज़त नहीं हमको वर्ना,
हम जिधर जाते नए फूल खिलाते जाते|
राहत इन्दौरी
आसमान धुनिए के छप्पर सा
रेंगने की भी इजाज़त नहीं हमको वर्ना,
हम जिधर जाते नए फूल खिलाते जाते|
राहत इन्दौरी