
किसे नसीब कि बे-पैरहन उसे देखे,
कभी कभी दर ओ दीवार घर के देखते हैं|
अहमद फ़राज़
आसमान धुनिए के छप्पर सा
किसे नसीब कि बे-पैरहन उसे देखे,
कभी कभी दर ओ दीवार घर के देखते हैं|
अहमद फ़राज़